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क्रिया की परिभाषा, भेद और उदहारण

आज के पोस्ट में हम आपको हिंदी व्याकरण के अध्याय क्रिया के बारे में संपूर्ण जानकारी -  क्रिया की परिभाषाभेद और उदहारण प्रदान करेंगे।


इससे पहले की पोस्ट में हमने आपको हिंदी व्याकरण के  विशेषण अध्याय की जानकारी दी थीविशेषण को अच्छे से समझने के लिए उसे भी पढ़े।

     क्रिया किसे कहते है?


    किसी कार्य के करने अथवा संपादन होने का बोध कराने वाले शब्द क्रिया कहलाते है।


    सरल शब्दों में,


    जिस शब्द से किसी कार्य का होना पता चलता है उसे क्रिया कहते है। जैसे जाना, खाना, पीना, सोना आदि।


    क्रिया विकारी शब्द है इसका रूप लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार बदलते है।


    धातु क्या है?


    क्रिया का मूल रूप धातु कहलाता है। धातु के द्वारा  क्रिया पद का निर्माण होता है इसलिए धातु, क्रिया के सभी रूपों में उपस्थित रहती है।


    जैसे:.        क्रिया                    धातु

                    चलना                   चल 

                   पढ़ना                     पढ़ 

                   उठना                      उठ 

                   सोना                      सो

                   देखना                     देख


    धातु में “ना” प्रत्यय जोड़कर क्रिया का निर्माण होता है।


    हिंदी में क्रियाएं धातु के अलावा संज्ञा और विशेषण से भी बनती हैं। जैसे


                    काम + आना = कमाना

                    चिकना + आना = चिकनाना


    पहचान- जब किसी शब्द में “ना” लगने पर क्रिया बने तो समझना चाहिए कि वह शब्दांश धातु है।



    धातु के कितने भेद होते हैं?


    शब्द निर्माण की दृष्टि से धातु के दो भेद होते हैं:


    1. मूल धातु - यह धातु स्वतंत्र होती है तथा किसी अन्य शब्द पर निर्भर नहीं होती है। जैसे खा, जा, पी, रह आदि।


    2. यौगिक धातु- यह धातु मूल धातु में प्रत्यय लगाकर, कई धातुओ को संयुक्त करके अथवा संज्ञा और विशेषण में प्रत्यय लगाकर बनाई जाती है।


    यौगिक धातु तीन प्रकार की होती हैं:-


    1. प्रेरणार्थक क्रिया (धातु):- जिन क्रियाओं से यह बोध होता है कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहा है। यह क्रियाएं अकर्मक और सकर्मक दोनों क्रियाओं से बनती हैं।


    जैसे:

    श्याम मुझसे पत्र लिखवाता है।


    इस उदाहरण में श्याम (कर्ता) स्वयं पत्र ना लिखकर मुझसे अर्थात दूसरे व्यक्ति को पत्र लिखने की प्रेरणा देता है।



    प्रेरणार्थक क्रिया की निम्नलिखित दो श्रेणियां होती है:


    (अ) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया:- जब कर्ता स्वयं कार्य करने में सम्मिलित हो, तब वह प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया होती है। इसमें प्रेरणा दिखाई नहीं देती है। जैसे:


    मैंने उसे पढ़ाया।


    (ब) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया:- जब कर्ता स्वयं कार्य ना कर किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा देता है, तब वह द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया होती है। इसमें प्रेरणा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। जैसे:


    मैंने आलोक से रविंद्र को कविता सुनवाई।


    इसमें सुनवाई क्रिया से कर्ता का कार्य करना प्रकट नहीं होता, बल्कि दूसरे व्यक्ति द्वारा कार्य संपन्न होना प्रकट होता है।


    2. यौगिक क्रिया (धातु):- दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से या धातुओं में प्रत्यय लगाने से जो क्रिया बनती है, वह यौगिक क्रिया कहलाती है जैसे:

    रोना-धोना, चलना-चल देना, उठना-बैठना, हँसना-हँसाना आदि


    3. नामधातु:- संज्ञा या विशेषण से बनने वाली धातु को नामधातु कहते है। जैसे:

    हाथ        -     हथियाना 

    बात       -      बतियाना 

    चिकना   -     चिकनाना


    नामधातु क्रिया का निर्माण चार प्रकार के शब्दों से होता है:-


    * संज्ञा शब्दों से नामधातु क्रिया बनाना


    संज्ञा शब्द               नामधातु क्रिया


    झूठ                           झुठलाना

    चक्कर                        चकराना

    खरीद                         खरीदना 

    हाथ                            हथियाना 

    फटकार                       फटकारना

    ठग                              ठगना 

    खर्च                             खर्चना

    रंग                               रंगना 

    शर्म                              शर्माना

    लाज                            लजाना

    गांठ                              गांठना



    * सर्वनाम शब्दों से नाम धातु क्रिया बनाना


    अपना                          अपनाना



    * विशेषण शब्दों से नामधातु क्रिया बनाना


    विशेषण शब्द              नामधातु क्रिया


    मोटा                             मुटाना

    दोहरा                           दोहराना

    साठ                            सठियाना

    नरम                             नरमाना


    * अनुकरण वाची शब्दों से नामधातु क्रिया बनाना


    अनुकरणवाची शब्द       नामधातु क्रिया


    थपथप                           थपथपाना 

    हिनहिन                         हिनहिनाना

    थरथर                           थरथराना

    बड़बड़                          बड़बड़ाना



    कर्म के अनुसार क्रिया के भेद

    कर्म के अनुसार या रचना की दृष्टि से क्रिया के दो भेद होते हैं: 


    1. सकर्मक क्रिया: जिस क्रिया के साथ कर्म हो या कर्म की संभावना हो तथा जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़ता हो उसे सकर्मक क्रिया कहते है। जैसे:


    रोहन फल खाता है।


    इस उदाहरण में रोहन कर्ता है, खाने के साथ उसका कृत रूप से संबंध है।

     

    प्रश्न उठता है क्या खाता है?

     उत्तर है फल। 


    इस तरह फल का सीधा खाने से संबंध है अतः फल कर्म कारक है।


    कर्म के आधार पर सकर्मक क्रिया के दो भेद होते है


    (अ) एककर्मक क्रिया:- जिस क्रिया का केवल एक ही कर्म होता है उसे एककर्मक क्रिया कहते है जैसे:


             संगीता रामायण पड़ती है।

    प्रश्न- संगीता क्या पढ़ती है?


             प्रभात  चित्र बना रहे है।

    प्रश्न- प्रभात क्या बना रहा है?


             राधा दूध पी रही है।

    प्रश्न- राधा क्या पी रही है?


     इन वाक्यों में पढ़ती, बना रहे है और पी रही है क्रियाओं के क्रमशः कर्म रामायण, चित्र और दूध एक ही है अर्थात जब यहाँ पर क्या, किसे और किसको से संबंधित प्रश्न किए जा रहे हैं तो उसका सिर्फ एक ही उत्तर है।




     (ब) द्विकर्मक क्रिया:- जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं उसे द्विकर्मक  क्रिया कहते हैं जैसे:


            संगीता ने राम को पुस्तक दी। 

    प्रश्न- संगीता ने किसे पुस्तक दी? 

            संगीता ने राम को क्या दिया?


            भव्य ने रोहन को पत्र लिखा।

    प्रश्न- भव्य ने किसे पत्र लिखा? 

            भव्य ने रोहन को क्या लिखा?


     इन वाक्यो में दी क्रिया के दो कर्म है राम और पुस्तक। इसी प्रकार दूसरे वाक्य में लिखा क्रिया के दो कर्म है गौरव और पत्र।



    2. अकर्मक क्रिया: अकर्मक क्रिया के साथ कर्म नहीं होता है और उसका फल कर्ता पर पड़ता है। जैसे:


    राधा रोती है।

    इस उदाहरण में रोती क्रिया है जिसका प्रभाव कर्ता अर्थात राधा पर पड़ता है यहाँ पर कर्म का अभाव है।



    सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान


    सकर्मक और अकर्मक क्रिया की पहचान क्या, किसे या किसको प्रश्न करने से होती है । यदि उत्तर मिले तो सकर्मक क्रिया और उत्तर ना मिले तो वह अकर्मक क्रिया होती है। जैसे:


              राम ने रावण को मारा। 

    प्रश्न-  राम ने किसे मारा?


    इस वाक्य में हमें उत्तर प्राप्त होता है रावण को मारा अर्थात यह सकर्मक क्रिया है।


             राम ने खाया।

    प्रश्न- राम ने क्या खाया?


    इस वाक्य में हमें कोई उत्तर प्राप्त नहीं होता है अर्थात यह अकर्मक क्रिया है।


    क्रिया के कुछ अन्य भेद


    1. सहायक क्रिया:- यह मुख्य क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर अर्थ को स्पष्ट एवं पूर्ण करने में सहायता करती है। जैसे:


     मैं घर जाता हूँ।

     इस वाक्य में जाना क्रिया है और हूँ  सहायक क्रिया है।


    मैंने पढ़ा था। 

    वह खा रहे थे। 

    वह जा रहा है। 


    इन वाक्यों में पढ़ना, खाना और जाना मुख्य क्रियाएं है और था, रहे थे, रहा है सहायक क्रियाएं है।


    2. पूर्वकालिक क्रिया:- जब कर्ता एक क्रिया को समाप्त कर उसी समय दूसरी क्रिया करना प्रारंभ करता है,तब पहली क्रिया पूर्वकालिक कहलाती है।

    जैसे:

    राम भोजन करके सो गया।


     इस वाक्य में “भोजन करना” पूर्वकालिक क्रिया है और “सोना” दूसरी क्रिया।


    3. नाम बोधक क्रिया:- जब क्रिया संज्ञा अथवा विशेषण के साथ जुड़ने से बनती है तब उसे नाम बोधक क्रिया कहते हैं। जैसे:


    संज्ञा +  क्रिया                        नाम बोधक क्रिया

    लाठी + मारना                       लाठी मारना

    रक्त + खौलना                       रक्त खौलना



    4. द्विकर्मक क्रिया:- जिस क्रिया में दो कर्म होते हैं वह द्विकर्मक क्रिया कहलाती है जैसे :


    अध्यापक ने छात्रों को हिंदी पढ़ाई।


    इस वाक्य में दो कर्म है - छात्रों को और हिंदी।


    5. संयुक्त क्रिया:- जब कोई क्रिया दो या दो से अधिक क्रियाओं के सहयोग से बनती हैं उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं जैसे:


    वह खाने लगा। 

    वह पेड़ से कूद पड़ा। 

    मैंने किताब पढ़ ली। 


    इन वाक्यों में खाने लगा, कूद पड़ा और पढ़ ली संयुक्त क्रिया आए है।


    अर्थानुसार संयुक्त क्रिया के 11 भेद बताए गए है:


    आरंभ बोधक- जिस संयुक्त क्रिया के द्वारा क्रिया के आरंभ होने का बोध हो, वह आरंभबोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ लगाना क्रिया के योग से होता है। इस स्थिति में मूल क्रिया में कोई परिवर्तन नहीं होता है अन्य क्रिया में लिंग, वचन आदि के अनुसार परिवर्तन होता है जैसे:


    अनुकृति लिखने लगी। 

    रोहित खाने लगा।


    अवकाश बोधक:- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया करने के अवकाश का बोध हो, वह अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ पाया क्रिया के योग से होता है। जैसे:


    सुरेश आगरा नहीं जा पाया

     मैं कल नहीं लिख पाया


    समाप्ति बोधक- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया की समाप्ति का बोध हो, वह समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ चुका या चुकी क्रिया के योग से होता है जैसे:


    जैसे:

     कविता पढ़ चुकी होगी

    वह सवाल कर चुका है


    शक्ति बोधक- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के कार्य करने की शक्ति का बोध हो, वह शक्तिबोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ सकना क्रिया के योग से होता है जैसे:


    वह पढ़ नहीं सकती है।

    मदन ही तुम्हारे इस काम को कर सकता है


    आवश्यकता बोधक:- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के कर्तव्य का बोध हो, वह आवश्यकता बोधक संयुक्त क्रिया कहलाती है।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ चाहिए होना अथवा पड़ा के योग से होता है जैसे:


    अब उसे काम करना चाहिए

    श्याम को कल दिल्ली जाना पड़ा


    इच्छा बोधक:- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया की इच्छा का बोध होता है उसे इच्छा बोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ चाहना के योग से होता है जैसे:


    मैं जाना चाहती हूं

    राधा सोना चाहती है


    अनुमति बोधक:- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के कार्य करने की अनुमति का बोध हो, उसे अनुमति बोधक संयुक्त  क्रिया कहते है।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ देना क्रिया के योग से होता है जैसे:


    इस लड़के को जाने दो

    मोहन को खेलने दो


    नित्यता बोधक:- जिस संयुक्त क्रिया से कार्य करने की नित्यता का बोध हो, उसे नित्यता बोधक संयुक्त क्रिया कहते है।


    इसका निर्माण मूल क्रिया के साथ करना अथवा होना क्रिया के बहुत से होता है जैसे:


    नीता काम करती रही।

    वह पत्र लिखता रहा


    अभ्यास बोधक:- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया करने के अभ्यास का बोध हो, उसे अभ्यास बोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।


    इसका निर्माण सामान्य भूतकाल की क्रिया में करना क्रिया लगाने से होता है जैसे:


    श्वेता पत्र लिखा करती थी

    छगन सवेरे दौड़ा करता था



    क्रियार्थक संज्ञा:- जब कोई क्रिया संज्ञा की तरह प्रयोग में आती है तब उसे क्रियार्थक संज्ञा कहते हैं।

    जैसे:

    देश के लिए मरना कीर्तिदायक है।




    क्रिया का पद परिचय


    क्रिया के पद-परिचय में क्रिया का प्रकार,पुरुष, लिंग, वचन,  काल और वह शब्द जिससे क्रिया का संबंध है यह सभी बातें बतानी चाहिए। जैसे


    मैं आता हूँ।

    इस वाक्य में आता हूँ क्रिया है


    इसका पदानव्य होगा:-


    आता हूँ- अकर्मक क्रिया, कर्तृवाच्य, सामान्य वर्तमान, उत्तम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, मैं इसका कर्ता ।


    उम्मीद करते है आपको क्रिया  की परिभाषाभेद और उदहारण की जानकारी पसंद आई होगी  और इससे आपको मदद  मिली होगी अगर आपके पास क्रिया से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो आप हमे Comment करे।

     

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